AVDESH-ROY
अग्नि पथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ!
अग्नि पथ! वृक्ष हों भले खड़े, हो घने, हो बड़े,
एक पत्र-छॉंह भी मॉंग मत, मॉंग मत, मॉंग मत!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
तू न थकेगा कभी! तू न थमेगा कभी! तू न मुड़ेगा कभी!
-कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ!
यह महान दृश्य है- चल रहा मनुष्य है
अश्रु-श्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
अग्नि पथ! वृक्ष हों भले खड़े, हो घने, हो बड़े,
एक पत्र-छॉंह भी मॉंग मत, मॉंग मत, मॉंग मत!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
तू न थकेगा कभी! तू न थमेगा कभी! तू न मुड़ेगा कभी!
-कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ!
यह महान दृश्य है- चल रहा मनुष्य है
अश्रु-श्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
एक भी आँसू न कर बेकार
एक भी आँसू न कर बेकार जाने कब समंदर मांगने आ जाए!
पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है
और जिस के पास देने को न कुछ भी एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है
कर स्वयं हर गीत का श्रृंगार जाने देवता को कौनसा भा जाय!
चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं
आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं
हर छलकते अश्रु को कर प्यार जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!
व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की काम अपने पाँव ही आते सफर में वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा जो स्वयं गिर जाय अपनी ही नज़र में हर लहर का कर प्रणय स्वीकार जाने कौन तट के पास पहुँचा जाए!
पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है
और जिस के पास देने को न कुछ भी एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है
कर स्वयं हर गीत का श्रृंगार जाने देवता को कौनसा भा जाय!
चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं
आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं
हर छलकते अश्रु को कर प्यार जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!
व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की काम अपने पाँव ही आते सफर में वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा जो स्वयं गिर जाय अपनी ही नज़र में हर लहर का कर प्रणय स्वीकार जाने कौन तट के पास पहुँचा जाए!
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